अवध ओझा, जो एक प्रसिद्ध UPSC शिक्षक हैं, ने 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (AAP) के उम्मीदवार के रूप में अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की। हालांकि, उन्हें पाटपड़गंज सीट से भारतीय जनता पार्टी (BJP) के उम्मीदवार रविंद्र सिंह नेगी से बड़ी हार का सामना करना पड़ा। नेगी ने ओझा को 28,072 वोटों के अंतर से पराजित किया। नेगी ने 74,060 वोट हासिल किए जबकि ओझा केवल 45,988 वोट ही प्राप्त कर सके।
अवध ओझा का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
गोंडा, उत्तर प्रदेश में जन्मे अवध ओझा का जीवन शिक्षण और यूपीएससी शिक्षा में अपनी अलग पहचान बनाने का रहा है। उनका परिवार शिक्षित था, पिता पोस्टमास्टर और माता वकील थीं। ओझा ने हिंदी साहित्य में एमए, एमफिल, और पीएचडी की डिग्री प्राप्त की और वर्ष 2005 में शिक्षण की शुरुआत की। 2019 में, उन्होंने पुने में इकरा आईएएस अकादमी की स्थापना की, जिससे उनकी ख्याति और बढ़ी।
राजनीतिक सफर की शुरुआत
अवध ओझा ने दिसंबर 2024 में AAP की सदस्यता ग्रहण की, जहां अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया ने उनके शिक्षा क्षेत्र में योगदान की सराहना की। पाटपड़गंज से उन्होंने मनीष सिसोदिया की जगह ली, जिन्होंने जंगपुरा से चुनाव लड़ने का निर्णय लिया था।
हालांकि ओझा की यात्रा इतनी आसान नहीं थी। उनकी मतदाता पंजीकरण पहले ग्रेटर नोएडा में थी जिसे दिल्ली में स्थानांतरित करने में कुछ मुद्दों का सामना करना पड़ा। आम आदमी पार्टी ने चुनाव आयोग के सामने आरोप लगाए, लेकिन आयोग ने समस्या का समाधान किया और ओझा को चुनाव लड़ने की इजाजत मिली।
हार के बाद, ओझा ने इसे अपनी 'व्यक्तिगत विफलता' करार देते हुए स्वीकार किया कि वे मतदाताओं के साथ पर्याप्त संपर्क स्थापित नहीं कर सके। उन्होंने समय की कमी के कारण लोगों से मिल पाने में कमी की बात कबूली और कहा, 'मैं अपनी हार की पूरी जिम्मेदारी लेता हूँ।' ओझा ने वादा किया कि वे और मजबूती के साथ लौटेंगे।
इस दौरान, AAP की पूरी परफॉर्मेंस दिल्ली चुनाव में कमजोर रही, जब बीजेपी ने 70 में से 50 सीटों पर बढ़त हासिल की। ओझा की हार के बावजूद, राजनीति में उनका इरादा मजबूत हुआ और वे भविष्य में और मेहनत करने की योजना बना रहे हैं।
Amrit Moghariya
फ़रवरी 10, 2025 AT 07:04ये टीचर भाई राजनीति में उतरे तो लोगों को लगा जैसे कोचिंग का एक्साम पेपर आ गया।
ashi kapoor
फ़रवरी 10, 2025 AT 17:22अवध ओझा की हार सिर्फ एक चुनाव की हार नहीं, बल्कि एक ऐसे इंसान की हार है जो दिमाग से बात करता है, दिल से नहीं। मतदाता तो वो चाहते हैं जो उनकी गलतियों को छुपाए, न कि उन्हें समझाए। 😔
shubham gupta
फ़रवरी 11, 2025 AT 13:10UPSC टीचर बनकर भी चुनावी रणनीति नहीं समझ पाए? ये तो एक टॉपर का गलत फैसला है। शिक्षा का ज्ञान और राजनीति का ज्ञान अलग चीज़ है।
Gajanan Prabhutendolkar
फ़रवरी 12, 2025 AT 21:16ये सब एक बड़ा साजिश है। AAP ने ओझा को बस एक लेक्चरर के रूप में बनाया ताकि वो जानबूझकर हार जाएं। वो लोग जानते थे कि एक शिक्षक कभी भी एक विधायक नहीं बन सकता। अब देखो, बीजेपी ने जो वोट लिए, वो सब फेक न्यूज़ से आए।
anand verma
फ़रवरी 13, 2025 AT 00:57अवध ओझा के शिक्षण के योगदान को कोई नहीं नकार सकता। लेकिन राजनीति में सफलता के लिए केवल ज्ञान ही पर्याप्त नहीं है - यहाँ भावनाओं की भाषा बोलती है। उन्होंने अपने ज्ञान को दिखाया, लेकिन अपने मतदाता को नहीं समझा।
Yash Tiwari
फ़रवरी 14, 2025 AT 09:01एक एमए, एमफिल, पीएचडी वाला आदमी चुनाव हार गया - ये भारत की शिक्षा प्रणाली का असली अपराध है। जब लोगों को याद रखने की बजाय समझने की शिक्षा नहीं मिलती, तो ये हार अपरिहार्य है। वो लोग जो वोट देते हैं, वो अपने भाग्य के लिए नहीं, बल्कि अपने अहंकार के लिए वोट देते हैं।
Mansi Arora
फ़रवरी 14, 2025 AT 23:07पाटपड़गंज में लोगों को अवध ओझा से ज्यादा एक आम आदमी की जरूरत थी जो बाजार की बातें समझता हो... ये टीचर तो बहुत अच्छा है लेकिन लोगों के दिमाग में उतर नहीं पाया 😅
sneha arora
फ़रवरी 16, 2025 AT 11:47ओझा जी ने बहुत मेहनत की थी... उनकी बातों में इतना सच है कि दिल छू जाता है ❤️ लेकिन राजनीति में दिल नहीं, दिमाग चलता है। आशा है वो वापस आएंगे - और अब और ज्यादा समझदारी से 😊
Amit Mitra
फ़रवरी 17, 2025 AT 17:44मुझे लगता है कि ओझा की हार का एक बड़ा कारण ये भी रहा कि उनकी पहचान अभी भी एक शिक्षक के रूप में थी, न कि एक नेता के। लोग उन्हें एक वक्ता बनाना चाहते थे, न कि एक नेता। राजनीति में तो बस एक अलग नाम और एक अलग भूमिका चाहिए।
Amrit Moghariya
फ़रवरी 18, 2025 AT 10:27हार गए? अच्छा हुआ। अगर वो जीत गए होते तो अब बीजेपी वाले भी शिक्षक बन जाते। लोगों को एक टीचर की जरूरत नहीं, एक आदमी की जरूरत है जो बाजार में जाकर दाल बेचे।
Siddharth Madan
फ़रवरी 18, 2025 AT 12:40हार ने उनकी बात को और भी असली बना दिया। अब वो लोगों के बीच आएंगे, न कि लेक्चर हॉल में।
Sagar Solanki
फ़रवरी 20, 2025 AT 08:07इसका तो एक गहरा राज़ है - जब कोई टीचर राजनीति में आता है, तो उसकी बातें इतनी सच्ची होती हैं कि लोग डर जाते हैं। उन्हें बस गुलाम बनाना है, न कि सोचने का अधिकार देना। ये चुनाव एक छल था।
Thomas Mathew
फ़रवरी 22, 2025 AT 04:03एक इंसान जिसने पीएचडी की है और चुनाव हार गया - ये भारत का सबसे बड़ा साक्ष्य है कि शिक्षा का मतलब अब बस डिग्री बन गया है। दिमाग नहीं, दिल चाहिए। और दिल तो बीजेपी के पास है।