2.25 करोड़ पंजीकृत लाभार्थियों वाली लाडकी बहिन योजना में बड़ी सर्जरी हुई है। राज्य की आईटी विभाग-आधारित जांच में अनियमितताएं सामने आने के बाद सरकार ने 26.34 लाख खातों पर जून 2025 से भुगतान रोक दिया है। चौंकाने वाली बात यह रही कि इस महिलाओं-केंद्रित योजना में 14,000 से ज्यादा पुरुष भी लाभ लेते मिले। महिला व बाल विकास मंत्री अदिति तटकरे ने कहा, पात्रों को भुगतान जारी रहेगा और संदिग्ध मामलों की जिला स्तर पर भौतिक जांच कराई जा रही है।
जांच में क्या मिला, किन श्रेणियों में अपात्रता दिखी
राज्य के सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने बड़े स्तर पर डेटा मिलान किया। विभाग ने आवेदन विवरण को आधार-आधारित eKYC, पारिवारिक रिकॉर्ड, आय-आयु मानकों और बैंक खाता जानकारी के साथ क्रॉस-चेक किया। इसी प्रक्रिया में कई तरह की विसंगतियां सामने आईं।
- पुरुष लाभार्थी: महिलाओं के लिए बनी योजना में 14,000+ पुरुषों के खाते सक्रिय मिले।
- परिवार स्तर की ऊपरी सीमा का उल्लंघन: एक ही परिवार से दो से अधिक सदस्यों को लाभ मिलता पाया गया।
- डुप्लीकेट/मल्टीपल क्लेम: एक ही व्यक्ति द्वारा अलग प्रविष्टियों के जरिए लाभ लेना या अलग योजनाओं से समान लाभ लेना।
- पात्रता मानकों का मिसमैच: आय सीमा (सालाना 2.5 लाख) और आयु मानक (21-65 वर्ष) से बाहर होने के बावजूद भुगतान का रिकॉर्ड।
सरकार ने साफ किया कि यह रोक अस्थायी और सावधानीपूर्ण है। संदिग्ध सूची जिला प्रशासन को भेज दी गई है। कलेक्टरों को घर-घर सत्यापन, दस्तावेज जांच और परिवार-आधारित मिलान का काम सौंपा गया है। जो पात्र पाए जाएंगे, उनका भुगतान बहाल किया जाएगा।
योजना के पैमाने का अंदाजा इससे लगाइए कि हर पात्र महिला को 1,500 रुपये महीना मिलता है। पंजीकरण 2.25 करोड़ होने का मतलब है कि मासिक वित्तीय भार 3,300-3,400 करोड़ रुपये के आसपास बैठता है। इतनी बड़ी रकम में डेटा शुद्धता और डुप्लीकेट रोकथाम अनिवार्य है। इसीलिए राज्य ने इसे अब तक की सबसे बड़ी सामाजिक योजना ऑडिट कवायद बताया है।
मंत्री अदिति तटकरे के मुताबिक, पात्र महिलाओं की किस्तें बिना रुकावट जारी रहेंगी। जिनका भुगतान रुका है, वे जांच में पात्र पाई जाने पर फिर से लाभ लेंगी। विभाग ने जिलों को प्राथमिकता तय करने को कहा है—जहां शिकायतें ज्यादा हैं, वहां पहले फील्ड वेरिफिकेशन होगा।
लाभार्थियों के लिए आगे की प्रक्रिया, वित्तीय असर और सियासी हलचल
अगर आपका भुगतान रुका है, तो घबराने की जरूरत नहीं। सबसे पहले अपनी मूल कागजात तैयार रखें—आधार कार्ड, बैंक पासबुक, आय प्रमाण पत्र, राशन कार्ड या परिवार संबंधी दस्तावेज। eKYC और बैंक खाते की वैधता दोबारा सुनिश्चित करें। ग्राम पंचायत/वार्ड कार्यालय, स्थानीय महिला व बाल विकास कार्यालय या तहसील स्तर पर सत्यापन शिविरों में दस्तावेज दिखाकर स्थिति अपडेट कराएं।
सरकार का कहना है कि सत्यापन पूरा होते ही पात्र लोगों के खाते में राशि फिर से जाएगी। बकाया किस्तों पर निर्णय जिला रिपोर्ट के आधार पर होगा। जो लोग गलत जानकारी देकर पैसा ले रहे थे, उनसे वसूली और कानूनी कार्रवाई की तैयारी है। विभाग सिस्टम को और कड़ा करने के लिए डीडुप्लिकेशन इंजिन, दो-स्तरीय eKYC और रैंडम फील्ड ऑडिट जैसी प्रक्रियाएं बढ़ाने की बात कर रहा है।
विपक्ष ने इसे बड़ा मुद्दा बना दिया है। एनसीपी (एसपी) की सुप्रिया सुले ने 4,800 करोड़ रुपये के घोटाले का आरोप लगाया और श्वेतपत्र के साथ उच्च स्तरीय जांच की मांग रखी। सरकार की ओर से संकेत हैं कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार के साथ हुई बैठकों के बाद गलत लाभ लेने वालों पर सख्त कार्रवाई और सिस्टम सुधार दोनों समानांतर चलेंगे।
सोशल सेक्टर की योजनाओं में अक्सर दो चुनौती रहती हैं—पात्र तक लाभ पहुंचाना और अपात्र को बाहर करना। इस केस में 26.34 लाख खातों पर रोक से तत्काल वित्तीय भार घटा है, लेकिन बड़ी परीक्षा यह है कि किसी वास्तविक लाभार्थी का हक न कटे। इसी वजह से सरकार ने जिलों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं: डेटा पर भरोसा करने से पहले घर-घर जाकर दस्तावेज देखें, परिवार-आधारित मिलान करें और हर फैसले का लिखित रिकॉर्ड रखें।
योजना का मूल उद्देश्य—21 से 65 वर्ष आयु की महाराष्ट्र की महिलाओं को 1,500 रुपये प्रतिमाह की सीधी सहायता—जारी है। जो महिलाएं आय सीमा में आती हैं, निवासी हैं और परिवार की पात्रता शर्तें पूरी करती हैं, उन्हें भुगतान मिलता रहेगा। अपात्रता के संदेह वाले मामलों में पारदर्शी, समयबद्ध और दस्तावेज-आधारित जांच अगला निर्णायक कदम है।
Suman Sourav Prasad
सितंबर 21, 2025 AT 18:34ये सब तो बस डेटा का खेल है, असली मुद्दा ये है कि जो महिलाएं असली तौर पर जरूरतमंद हैं, उनका भुगतान रुक गया है। अब जिला स्तर पर घर-घर जाकर जांच करने की बात हो रही है, तो इसका मतलब है कि डिजिटल सिस्टम अकेला काम नहीं करता।
मैंने अपने गांव में देखा है, एक दरिद्री महिला ने अपना आधार कार्ड अपडेट नहीं करवाया, और उसका भुगतान रुक गया। उसके पास राशन कार्ड है, बैंक खाता है, लेकिन ऑनलाइन डेटा में उसका नाम गायब है।
हम डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन की बात करते हैं, लेकिन जब तक ग्रामीण इलाकों में डिजिटल साक्षरता नहीं बढ़ेगी, तब तक ये सब बस एक बड़ा फेक ऑडिट लगेगा।
जिला प्रशासन को लोगों के साथ बैठकर बात करनी चाहिए, न कि बस फॉर्म भरवाना।
Nupur Anand
सितंबर 23, 2025 AT 11:31अरे भाई, ये तो बस एक बड़ी सामाजिक झूठ का खुलासा है! लाडकी बहिन योजना का नाम तो महिलाओं के लिए है, लेकिन इसके अंदर तो घर के बाप, चाचा, फुफेरे भाई, और बाप के दोस्त तक भाग रहे थे! ये नहीं कि महिलाएं लाभ नहीं ले रहीं, बल्कि उनके नाम पर नाम चल रहा है।
इस योजना का मूल उद्देश्य तो नारी शक्ति को बढ़ावा देना था, लेकिन ये तो नारी के नाम पर पुरुषों का राज्य बन गया है।
मैंने एक दोस्त की बहन को जानता हूं, जिसका आधार बैंक खाते में लिंक नहीं हुआ, लेकिन उसके भाई का खाता इस योजना के तहत सक्रिय है।
ये नहीं कि सरकार ने कुछ नहीं किया, बल्कि ये कि उसने बहुत देर से किया।
अब तो बस ये देखोगे कि कितने पुरुषों के खाते बंद हुए, और कितने असली महिलाओं के खाते अभी तक बंद हैं।
डीडुप्लिकेशन इंजिन? बस एक टेक्नोलॉजी का नाम बदलकर नाम बदल दिया। असली जांच तो इंसानी नजर से होनी चाहिए।
Vivek Pujari
सितंबर 24, 2025 AT 01:25इस योजना में लागू होने वाली गवर्नेंस आर्किटेक्चर अत्यंत रिस्क-प्रोन थी। एकल-स्रोत eKYC डेटा एंट्री के आधार पर लाभ वितरण करना, जिसमें डेटा एक्सप्लोइटेशन की संभावना अधिक थी, एक गंभीर सिस्टमिक फेलियर था।
डुप्लीकेट क्लेम्स, फैमिली-लेवल ओवरलैप, आय-आयु मिसमैच-ये सभी एंट्रीज़ को ऑडिट ट्रेल के बिना अप्रूव करने का नतीजा है।
राज्य सरकार ने अब फील्ड वेरिफिकेशन की ओर रुख किया है, जो एक डिस्क्रेपेंसी रिक्ति को भरने का एक लैग्स रिस्पॉन्स है।
मुझे आश्चर्य है कि इतने सालों तक इतनी बड़ी अनियमितता क्यों नहीं देखी गई? ये एक गवर्नेंस लीकेज है, जिसे टेक्नोलॉजी से नहीं, बल्कि प्रशासनिक अकाउंटेबिलिटी से ही रोका जा सकता है।
अब जिला कलेक्टरों को घर-घर जाने को कहा गया है-ये तो एक रिट्रो-फिट है, न कि एक सिस्टमिक सॉल्यूशन।
ये योजना अब तक बहुत ज्यादा डिजिटल फॉकस पर आधारित रही, जिसने मानवीय घटक को नजरअंदाज कर दिया।
Ajay baindara
सितंबर 24, 2025 AT 15:13ये सब बकवास है। जिन लोगों ने योजना का दुरुपयोग किया, उन्हें सजा दो, न कि बस भुगतान रोक दो।
क्या तुम्हें लगता है कि ये लोग बिना जाने ऐसा करते हैं? ये सब बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि कैसे फंसाएं।
मैंने एक बार अपने दोस्त के घर देखा-उसके भाई ने अपनी बहन का आधार कार्ड लेकर खाता बनवा लिया। बहन को तो नहीं पता था कि उसका नाम इस योजना में है।
अब जिला अधिकारी घर-घर जाएंगे? बस एक बार जाकर देख लो, बाकी सब तो फेक है।
सरकार को चाहिए कि ये योजना बंद कर दे, और नई योजना बनाए-जिसमें सीधे बैंक खाते में पैसा डाला जाए, और बैंक खाता तब तक नहीं खोला जाए जब तक एक असली महिला उसका नाम न डाले।
mohd Fidz09
सितंबर 26, 2025 AT 14:57ये योजना तो बस एक बड़ा धोखा है! जिसने भी इसे बनाया, उसका दिमाग भारतीय नारी के बारे में बिल्कुल नहीं जानता।
हमारे देश में लड़कियों को नाम देने के लिए भी उनके पिता को जाने-माने नाम देने पड़ते हैं। अब इस योजना के तहत लड़कियों के नाम पर पुरुषों के खाते खुल गए।
मैंने एक दोस्त के घर में देखा-उसके चाचा ने अपनी बहन के नाम से खाता बनवाया, और वह खुद उसका पैसा निकाल रहा था।
ये नहीं कि योजना बुरी है, बल्कि ये कि इसे लागू करने वाले लोग बिल्कुल बेवकूफ हैं।
अब जिला प्रशासन घर-घर जाएगा? बस एक बार जाकर देख लो, बाकी सब तो फेक है।
अगर ये योजना असली महिलाओं के लिए है, तो उनके खाते को बैंक में जमा करने के बाद उनके हाथ में पैसा देना चाहिए, न कि उनके परिवार के पुरुषों के हाथ में।
हमें एक ऐसी योजना चाहिए जहां लड़कियों को बैंक खाता खोलने का अधिकार दिया जाए, और उसका पासबुक उनके हाथ में रहे।
Rupesh Nandha
सितंबर 27, 2025 AT 13:56इस योजना के बारे में बात करते समय हमें दो बातें ध्यान में रखनी चाहिए-एक तो ये कि योजना का उद्देश्य क्या है, और दूसरा ये कि उसके लागू होने का तरीका क्या है।
उद्देश्य तो बहुत स्पष्ट है-महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता देना।
लेकिन जब तक हम उन्हें आर्थिक निर्णय लेने का अधिकार नहीं देंगे, तब तक ये योजना बस एक बड़ा नाम होगी।
मैंने एक गांव में एक महिला से बात की, जिसका खाता रुक गया था। उसने कहा, ‘मैंने अपना आधार कार्ड अपडेट नहीं किया, क्योंकि मुझे नहीं पता था कि इसका क्या मतलब है।’
इसका मतलब ये नहीं कि वह धोखेबाज है, बल्कि वह जानकारी से वंचित है।
हमें डेटा जांच के साथ-साथ जागरूकता अभियान भी चलाने की जरूरत है।
अगर हम लोगों को नहीं समझाते, तो वे भी नहीं समझेंगे।
ये योजना तभी सफल होगी, जब एक महिला अपने खाते को अपने हाथ में रख पाएगी, और उसे ये भी पता होगा कि वह क्या ले रही है।
हमें बस डेटा नहीं, बल्कि शिक्षा चाहिए।
suraj rangankar
सितंबर 28, 2025 AT 23:41ये तो बहुत अच्छी बात है! सरकार ने जो किया, वो बहुत बड़ा कदम है।
अगर आपका भुगतान रुका है, तो घबराएं नहीं, बल्कि अपने दस्तावेज तैयार करें और तहसील जाएं।
मैंने अपने भाई की बहन को बताया-उसका भुगतान रुका था, लेकिन उसने अपना आधार, बैंक पासबुक, और आय प्रमाण पत्र जमा किया। अब उसका पैसा वापस आ गया।
ये योजना असली महिलाओं के लिए है, और जो असली हैं, उन्हें बिना किसी देरी के पैसा मिलेगा।
हमें बस इतना करना है-अपने दस्तावेज तैयार रखना, और अपने अधिकारों के बारे में जागरूक होना।
जो लोग गलत तरीके से पैसा ले रहे थे, उनका भी जवाब आएगा।
इससे बेहतर ये नहीं हो सकता कि असली महिलाओं को सही तरीके से पैसा मिले।
अगर आपको लगता है कि आपका भुगतान गलती से रुक गया है, तो तुरंत जाएं, और अपना मामला दर्ज कराएं।
ये योजना हमारी महिलाओं के लिए है, और हमें इसे सही तरीके से लागू करना है।
Nadeem Ahmad
सितंबर 29, 2025 AT 07:44मैंने बस इतना देखा कि जिन लोगों का भुगतान रुका है, उनमें से कुछ तो असली महिलाएं भी होंगी।
सरकार को बस ये याद रखना चाहिए कि डेटा कभी-कभी गलत होता है।
Aravinda Arkaje
सितंबर 30, 2025 AT 06:16ये योजना तो बहुत बड़ी और अहम है, लेकिन इसका असली मतलब तब ही आएगा जब एक गरीब महिला अपने खाते में पैसा देखकर मुस्कुराएगी।
हमें बस इतना करना है-जो लोग असली हैं, उन्हें पैसा पहुंचाना।
मैंने अपने गांव में एक महिला को देखा, जिसने अपने बेटे के नाम पर खाता बनवा लिया था। उसका बेटा तो बाहर नौकरी कर रहा था, लेकिन उसकी बहन घर पर रहती थी।
अब जब ये जांच हो रही है, तो उसका भुगतान बहाल हो जाएगा।
हमें बस इतना चाहिए-कि कोई भी असली महिला इस योजना से बाहर न रहे।
जिला प्रशासन को बस ये करना है-घर-घर जाकर देखना, और जो लोग असली हैं, उन्हें पैसा देना।
ये योजना बस एक नाम नहीं, बल्कि एक आशा है।
और आशा को बचाना हमारा कर्तव्य है।
kunal Dutta
सितंबर 30, 2025 AT 18:10अरे भाई, ये तो बस एक बड़ा डेटा गड़बड़ा है।
आधार लिंक किया है, लेकिन आय प्रमाण पत्र अपडेट नहीं हुआ? तो फिर ये ऑटोमेटेड सिस्टम क्यों चल रहा है? ये तो एक बड़ी बात है।
मैंने एक दोस्त के घर में देखा-उसकी बहन का आधार कार्ड बैंक में लिंक था, लेकिन उसका आय प्रमाण पत्र अपडेट नहीं हुआ था।
अब उसका भुगतान रुक गया।
ये नहीं कि वह धोखेबाज है, बल्कि ये कि उसे पता नहीं था कि उसे अपडेट करना है।
हम डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन की बात करते हैं, लेकिन ग्रामीण महिलाओं को डिजिटल लिटरेसी क्यों नहीं दी जाती?
ये योजना तो बहुत अच्छी है, लेकिन इसका लागू होने का तरीका बहुत खराब है।
अब जिला प्रशासन को घर-घर जाना होगा, लेकिन ये तो एक बड़ा लैग्स रिस्पॉन्स है।
हमें बस एक बात याद रखनी है-डेटा कभी-कभी गलत होता है, और उसका जवाब बस जांच नहीं, बल्कि जागरूकता है।
Yogita Bhat
अक्तूबर 1, 2025 AT 19:32अरे यार, ये तो बस एक बड़ा फेक ऑडिट है! जिन लोगों ने योजना का दुरुपयोग किया, उन्हें तो जेल भेज देना चाहिए, न कि बस भुगतान रोक देना।
मैंने अपने चाचा के घर में देखा-उनके भाई ने अपनी बहन के नाम से खाता बनवाया, और वह खुद उसका पैसा निकाल रहा था।
अब जब ये जांच हो रही है, तो वह भाई तो बच गया, लेकिन उसकी बहन का खाता रुक गया।
ये तो बस एक बड़ा धोखा है।
हमें बस इतना करना है-असली महिलाओं को पैसा देना, और धोखेबाजों को जेल भेजना।
अगर ये योजना असली महिलाओं के लिए है, तो उनके खाते को बैंक में जमा करने के बाद उनके हाथ में पैसा देना चाहिए, न कि उनके परिवार के पुरुषों के हाथ में।
हमें एक ऐसी योजना चाहिए जहां लड़कियों को बैंक खाता खोलने का अधिकार दिया जाए, और उसका पासबुक उनके हाथ में रहे।
ये योजना बस एक नाम नहीं, बल्कि एक आशा है।
और आशा को बचाना हमारा कर्तव्य है।