भारत की चीता स्थानांतरण योजना में सोमालिया, तंजानिया और सूडान का विचार
भारत ने नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से आने वाले चीतों के अनुकूलन चुनौतियों को देखते हुए सोमालिया, तंजानिया और सूडान से चीते लाने पर विचार किया था। इस कदम का मुख्य उद्देश्य था कि भारतीय जलवायु के साथ अधिक सामंजस्य बने और चीतों की मृत्य और स्वास्थ्य समस्याओं को रोका जा सके। वर्तमान स्थानांतरण योजना के तहत, दक्षिण अफ्रीकी चीतों को मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान में स्थानांतरित किया जा रहा है, जिसमें कई समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।
चीता अनुकूलन के चुनौतीपूर्ण पहलू
दक्षिण अफ्रीकी चीतों ने भारतीय जलवायु के अनुकूल होने में काफी समस्याओं का सामना किया है। भारतीय जलवायु में अत्यधिक तापमान के कारण चीतों में स्वास्थ्य जटिलताएं और कई मौतें हो चुकी हैं। इन सभी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए, भारतीय सरकार और पर्यावरण विशेषज्ञों ने अन्य स्थानों से चीते लाने पर भी विचार किया था। सोमालिया, तंजानिया और सूडान जैसे देशों में तापमान और जलवायु को देखते हुए यह विचार परखा गया था।
तथापि, इन देशों से चीते लाने की मुसीबतों और चयनित चीतों की क्वांटम अनुकूलन की अनिश्चितताओं के चलते, अंततः सरकार ने दक्षिण अफ्रीकी चीतों के स्थानांतरण योजना को जारी रखा। इस पूरे प्रक्रिया के दौरान पर्यावरणीय और स्वास्थ्य जटिलताओं ने परियोजना को बहस का विषय बना दिया।
विवाद और आलोचनाएं
कुनो राष्ट्रीय उद्यान में चीतों के स्थानांतरण पर विवाद की स्थिति बनी रही है। कई विशेषज्ञों ने इस परियोजना को 'वनिटी प्रोजेक्ट' के तौर पर करार दिया और कुनो राष्ट्रीय उद्यान की योग्यता पर सवाल उठाए। इनके अनुसार, इस उद्यान में चीतों का सही संरक्षण और अनुकूलन संभव नहीं है, जिससे इनकी संरक्षा पर खतरा मंडरा रहा है। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि चीते को अन्य स्थानों पर स्थानांतरित किया जाना चाहिए था।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस मुद्दे पर केंद्र सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है कि चीतों को कुनो में ही क्यों रखा गया है और यह भी सुझाव दिया कि चीतों के लिए कई आवास बनाने पर विचार किया जाना चाहिए। इस प्रस्तावित योजना ने वन्यजीव संरक्षण में बहस को और गहरा कर दिया है और प्रमुख मुद्दों को उभारा है।
सरकार का दृष्टिकोण
वर्तमान विवादों और चुनौतियों के बावजूद, भारतीय सरकार ने अपनी योजना को जारी रखते हुए कुनो राष्ट्रीय उद्यान को चीतों के पुनर्वास के लिए सर्वोत्तम स्थान बना रहने का निर्णय लिया है। विकासशील प्रक्रिया के तहत, प्रशासनिक और पर्यावरणीय पहलुओं को उचित तरीके से प्रबंधित करने की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं ताकि चीतों के इस अभिज्ञान को सफल बनाया जा सके और इन वन्यजीवों का संपूर्ण संरक्षण सुनिश्चित हो सके।
इस पूरे परिदृश्य के बीच, हमें यह समझना होगा कि वन्यजीव संरक्षण में चुनौतियों का सामना करना हमेशा एक जटिल प्रक्रिया रहा है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में चीतों के पुनर्वास का यह प्रयास न केवल वन्यजीव संरक्षण के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह देश की प्राकृतिक धरोहर की पुनर्स्थापना में भी सहायक होगा।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भविष्य में यह परियोजना किस प्रकार सफल होती है और आने वाले समय में यह निर्णय किस तरह के परिणाम लेकर आता है।
suraj rangankar
अगस्त 26, 2024 AT 23:50ये चीते लाने का जो बड़ा धमाका हुआ, उससे पहले कुनो में जंगल की वो बुनियादी तैयारी हुई क्या? नहीं! तो फिर ये सब किसके लिए? बस फोटो खींचने के लिए? 🤦♂️
Nadeem Ahmad
अगस्त 27, 2024 AT 19:21अच्छा हुआ कि दक्षिण अफ्रीका से लाए, क्योंकि अगर सोमालिया से लाते तो अब तक वहां के लोगों के साथ डील करने में फंस जाते।
Aravinda Arkaje
अगस्त 28, 2024 AT 08:41दोस्तों, ये सिर्फ चीते का मामला नहीं, ये हमारी वन्यजीव नीति की बात है। हम हर बार बड़े-बड़े नाम लेते हैं, लेकिन असली जमीन पर क्या हो रहा है? चीते के लिए जंगल बनाना नहीं, बल्कि उनकी आदतों को समझना है। ये जानवर खुले मैदान में भागते हैं, न कि घने जंगलों में। कुनो की जगह राजस्थान के बालासोर या गुजरात के कच्छ को देखो - वहां तो चीते के लिए बहुत बेहतर वातावरण है। हमें बस दिमाग लगाना है, न कि ट्रॉफी बनाना।
हम जिस तरह से गायों के लिए गोशालाएं बनाते हैं, उसी तरह चीतों के लिए उनकी जीवनशैली के अनुकूल आवास बनाने की जरूरत है। ये सब बस एक राष्ट्रीय प्रतीक बनाने के लिए नहीं, बल्कि एक जीवित विरासत को बचाने के लिए है।
अगर हम इसे सही तरीके से करेंगे, तो ये चीते हमारे बच्चों के लिए एक जीवित उदाहरण बन सकते हैं - कि हमने अपनी गलतियों को सुधारने की हिम्मत की।
मैं इस परियोजना को नहीं रोकना चाहता, बल्कि इसे बेहतर बनाना चाहता हूं। इसलिए जो लोग आलोचना कर रहे हैं, उनकी आवाज़ को बंद न करें - उन्हें सुनें। क्योंकि जब तक हम अपनी गलतियों को स्वीकार नहीं करेंगे, तब तक ये प्रयास बस एक नाम के लिए ही रह जाएगा।
हम अपने वन्यजीवों के लिए बहुत ज्यादा बोलते हैं, लेकिन कम सुनते हैं। चीते बोल नहीं सकते, लेकिन उनके व्यवहार से हमें सब कुछ पता चल जाता है। बस देखना है - क्या हम देख रहे हैं?
kunal Dutta
अगस्त 29, 2024 AT 06:13लुक्स वाला बिजनेस मॉडल है ये - एक एक्सटिंक्ट स्पीशीज़ को रिस्टोर करने का फेक नैचुरलिस्टिक गेम। नैचुरल हैबिटेट? नहीं। क्लाइमेट एडेप्टेशन? नहीं। जीनेटिक डाइवर्सिटी? नहीं। बस एक ट्रॉफी और एक न्यूज़ फीड ब्लॉस्ट। ये एक बायोडायवर्सिटी इंजीनियरिंग ट्रेनिंग वर्कशॉप नहीं, बल्कि एक डिजिटल फेम गैरेज है।
जब तक हम एक स्पेसिफिक एकोलॉजिकल निचे के लिए एक एक्सटर्नल इंजेक्शन नहीं करेंगे, तब तक ये सब एक वाइल्डलाइफ थीम पार्क ही रहेगा। और फिर भी लोग शेयर करेंगे - #CheetahInIndia, #ConservationWin, #NationalPride - जबकि असली विकास तो बस एक बैकग्राउंड नोट में दफन है।
Yogita Bhat
अगस्त 30, 2024 AT 19:49चीते के लिए जमीन नहीं, तस्वीरें चाहिए थीं।