Homebound: ऑस्कर 2026 के लिए भारत की आधिकारिक एंट्री, नीराज घेवन की फिल्म पर वैश्विक नजर

Homebound: ऑस्कर 2026 के लिए भारत की आधिकारिक एंट्री, नीराज घेवन की फिल्म पर वैश्विक नजर

सित॰, 20 2025

भारतीय सिनेमा 24 साल से ऑस्कर में बेस्ट इंटरनेशनल फीचर के नामांकन का इंतजार कर रहा है। इस बार उम्मीद का केंद्र है Homebound—ईशान खट्टर, जान्हवी कपूर और विशाल जेठवा की वह फिल्म, जिसे 98वें एकेडमी अवॉर्ड्स (ऑस्कर 2026) के लिए भारत की आधिकारिक एंट्री घोषित किया गया है। 19 सितंबर 2025 को आई घोषणा के साथ ही इंडस्ट्री में उत्साह साफ दिखा—क्योंकि यह सिर्फ एक फिल्म की उपलब्धि नहीं, भारत की कहानियां वैश्विक मंच पर कैसे सुनी जाती हैं, उसका भी इम्तिहान है।

भारत की आधिकारिक एंट्री: आगे का रास्ता और क्या बदलेगा

नीराज घेवन निर्देशित Homebound का निर्माण धर्मा प्रोडक्शंस ने किया है और इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिग्गज फिल्ममेकर मार्टिन स्कॉर्सेसी का सहयोग मिला है। यह संयोजन—मुख्यधारा बॉलीवुड की प्रोडक्शन क्षमता, इंडी सेंसिबिलिटी और ग्लोबल मेंटरशिप—ऑस्कर कैम्पेन के लिए एक ठोस ढांचा बनाता है।

भारत की ओर से चयन के बाद अगला चरण एकेडमी की इंटरनेशनल फीचर फिल्म ब्रांच के सामने स्क्रीनिंग्स, सवाल-जवाब सत्र और लक्षित प्रचार का होता है। आम तौर पर साल के अंत तक शॉर्टलिस्ट जारी होती है और जनवरी में फाइनल नॉमिनेशन आते हैं। इसी दौरान फिल्म के अंग्रेजी सबटाइटिल, तकनीकी डिलिवरेबल्स और लॉस एंजिल्स समेत प्रमुख शहरों में शो आयोजित करने पड़ते हैं—यहीं प्रोडक्शन हाउस की रणनीति और नेटवर्क काम आता है।

प्रतिस्पर्धा कड़ी रहेगी—फ्रांस, जापान, डेनमार्क, इरान, कोरिया जैसे देशों की फिल्में हर साल मजबूत दावेदारी पेश करती हैं। लेकिन Homebound का विषय सार्वभौमिक है: सम्मान, पहचान और दोस्ती की कीमत। ऑस्कर वोटिंग में यही भावनात्मक स्पष्टता और सिनेमाई सादगी कई बार निर्णायक फर्क पैदा करती है।

मुख्य तथ्य एक नजर में:

  • फिल्म: Homebound | निर्देशक: नीराज घेवन
  • मुख्य कलाकार: ईशान खट्टर, जान्हवी कपूर, विशाल जेठवा
  • प्रोडक्शन: धर्मा प्रोडक्शंस | अंतरराष्ट्रीय सहयोग: मार्टिन स्कॉर्सेसी
  • रिलीज: 26 सितंबर 2025 (थिएट्रिकल), उसके बाद नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीमिंग
  • लोकेशन: मध्य प्रदेश | समर्थन: एमपी फिल्म टूरिज्म पॉलिसी 2025

ऑस्कर तक की यात्रा अब प्रचार की बारीक रणनीति पर टिकेगी—कौन-कौन से स्क्रीनिंग क्लब्स, कौन से क्राफ्ट गिल्ड्स, किस मीडिया नैरेटिव पर जोर। ग्लोबल बातचीत में जगह बनानी होती है और यह तभी होता है जब फिल्म का मानवीय केंद्र एक नजर में समझ आए। Homebound के पास यह ताकत दिखती है।

कहानी, निर्माण और लोकेशन: स्क्रीन से बाहर तक असर

कहानी, निर्माण और लोकेशन: स्क्रीन से बाहर तक असर

कहानी उत्तर भारत के एक छोटे गांव के दो लड़कों की है जिनका एक ही सपना है—खाकी पहनना। उनके लिए नौकरी नहीं, वर्दी का सम्मान दांव पर है। जैसे-जैसे वे लक्ष्य के करीब आते हैं, हालात और आपसी रिश्तों की परख शुरू होती है। नीराज घेवन इसे उन लोगों की कहानी कहते हैं जो अक्सर नजर नहीं आते—जिनकी चुप्पी में ताकत है। यह दृष्टि उनकी फिल्मों की पहचान रही है—कान्स में सराही गई ‘मसान’ से लेकर उनकी बाद की संवेदनशील कहानियां तक।

ईशान खट्टर और विशाल जेठवा ने पिछली फिल्मों में रेंज दिखाई है—ऊर्जा, बेचैनी और सहजता का मिश्रण। जान्हवी कपूर अपने हालिया कामों में रॉ-इमोशन पर भरोसा करती दिखी हैं। ऐसे किरदारों में कैमरा चेहरे पर टिकता है, इसलिए अभिनय की सच्चाई सबसे पहले पकड़ी जाती है। अगर सिनेमैटोग्राफी ग्रामीण परिदृश्य, धूल, रोशनी और रात की आवाजों को ईमानदारी से पकड़ती है, तो फिल्म का ‘टेक्सचर’ खुद-ब-खुद कहानी कहने लगता है।

मध्य प्रदेश इस कहानी का तीसरा किरदार बनकर उभरता है। राज्य ने पिछले कुछ सालों में शूटिंग का बड़ा ठिकाना बनने की ठानी है—सिंगल-विंडो सिस्टम, आसान परमिशन, पारदर्शी प्रक्रियाएं और वित्तीय प्रोत्साहन ने प्रोड्यूसर्स के लिए गणित बदल दिया है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इसे फिल्म इंडस्ट्री और राज्य—दोनों के लिए गर्व का पल बताया। इससे पहले ‘मिसिंग लेडीज़’ को ऑस्कर नामांकन मिला था और वह भी यहीं शूट हुई थी—यानी लोकेशन और नीति का संयोजन असर दिखा रहा है।

इस बदलाव का असर स्क्रीन से बाहर भी जाता है। स्थानीय आर्टिस्ट्स और टेक्नीशियंस को काम मिलता है, होटल-ट्रांसपोर्ट का कारोबार बढ़ता है और जिन लोकेशनों पर शूट होता है, वहां टूरिज्म तेज होता है। अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्म पर बात पहुंचते ही एक राज्य ‘फिल्म-फ्रेंडली’ ब्रांड बन जाता है—नए प्रोजेक्ट खुद चलकर आते हैं।

उद्योग के भीतर से शुरुआती प्रतिक्रियाएं गर्मजोशी भरी रही हैं। जोया अख्तर और महीप कपूर ने सोशल मीडिया पर बधाई दी—ये संदेश सिर्फ शिष्टाचार नहीं, बल्कि इस भरोसे की पुष्टि हैं कि फिल्म के पास दौड़ में बने रहने की क्षमता है। धर्मा की मार्केटिंग मशीनरी इसकी मदद करेगी—क्योंकि इंटरनेशनल फीचर कैटेगरी में भी जागरूकता बनाना आधी लड़ाई है।

रिलीज रणनीति भी समझदारी भरी है—थिएट्रिकल के तुरंत बाद नेटफ्लिक्स स्ट्रीमिंग। बड़े प्लेटफॉर्म पर उपलब्धता चर्चा को लंबा खींचती है, दर्शक आधार बढ़ाती है और पुरस्कार सीजन की गर्मी बनाए रखती है। कई वोटर्स सार्वजनिक बातचीत से संकेत लेते हैं—क्रिटिक्स की सूचियां, सिनेमा क्लब्स की स्क्रीनिंग्स और सोशल चर्चा सब साथ मिलकर गति बनाते हैं।

भारत का रिकॉर्ड इस कैटेगरी में सख्त रहा है: ‘मदर इंडिया’, ‘सलाम बॉम्बे!’ और ‘लगान’—बस तीन नामांकन। इसके बाद दुनिया ने भारतीय सिनेमा को अलग-अलग कैटेगरी में सराहा—गीत, डॉक्यूमेंट्री, शॉर्ट्स—पर इंटरनेशनल फीचर में मंजिल दूर रही। Homebound का चयन इस गैप को भरने की कोशिश है—एक समकालीन, जड़ से जुड़ी कहानी जो ग्लोबल दर्शक समझ सके।

आगे की राह में सबसे जरूरी है फिल्म की मूल ताकतों को सामने रखना—किरदारों की दोस्ती, वर्दी के प्रतीक का अर्थ, और छोटे पल जो बड़ी सच्चाइयों तक ले जाते हैं। अगर प्रचार भाषा से ज्यादा भाव पर बोलेगा, तो यह फिल्म लंबे समय तक सुनी जा सकती है। ऑस्कर एक नतीजा है, पर उससे पहले की बातचीत में जगह बनाना ही असली परीक्षा है—और यहीं Homebound पहली नजर में पास होती दिखती है।

15 टिप्पणि

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    Yogesh Dhakne

    सितंबर 22, 2025 AT 18:31

    ये फिल्म अगर बस एक बार देख लो तो लगेगा कि भारत की कहानी अब दुनिया को समझने के लिए तैयार है। धूल, चुप्पी, और वर्दी का सम्मान - ये सब कुछ बिना शोर के बोल रहा है।

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    Rosy Forte

    सितंबर 22, 2025 AT 23:37

    मैंने इस फिल्म के ट्रेलर को एक बार देखा था और तुरंत महसूस किया - ये एक नए नेस्टल के निर्माण की कोशिश है, जो न केवल बॉलीवुड के लिए बल्कि ग्लोबल सिनेमा के लिए एक नया लैंडस्केप बनाएगा। नीराज घेवन ने अपनी फिल्मों में हमेशा उन चीजों को दर्शाया है जो दर्शक के अंदर अनजाने में टकराती हैं। ये फिल्म एक ऐसी फिल्म है जिसे आप देखकर अपने बचपन के उन शामों को याद कर लेंगे जब आपका दिल बिना किसी शब्द के बोल रहा था।

    मार्टिन स्कॉर्सेसी का सहयोग इसे एक अलग स्तर पर ले जाता है - वो जानते हैं कि जब भावनाएं अतिरंजित न हों, तो वो असली होती हैं। ये फिल्म एक फिल्म नहीं, एक आत्मा का दस्तावेज है।

    मध्य प्रदेश की धूल और उसकी खामोशी ने इस फिल्म को एक ऐसा टेक्सचर दिया है जिसे कोई भी अनुकूलित नहीं कर सकता। ये फिल्म नहीं, एक भावनात्मक रिकॉर्डिंग है।

    मैं नहीं चाहता कि ये फिल्म ऑस्कर जीते, मैं चाहता हूँ कि ये दुनिया को एक नया तरीका दे जिससे वो भारत को समझे - न कि बॉलीवुड के नाम पर, बल्कि उस आत्मा के नाम पर जो हर छोटे गांव में अभी भी जी रही है।

    अगर ये फिल्म नामांकित नहीं हुई, तो ऑस्कर अपनी खुद की निष्पक्षता का अपमान कर रहा है।

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    kuldeep pandey

    सितंबर 24, 2025 AT 20:17

    हम्म। ऑस्कर के लिए भारत की एंट्री? तो फिर अब हर साल एक फिल्म को नामांकित करने के लिए एक बड़ा बजट लगाना होगा? और जान्हवी कपूर का अभिनय अब इतना ‘रॉ-इमोशनल’ हो गया है कि वो एक टीवी ड्रामा के लिए भी काफी नहीं है।

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    Hannah John

    सितंबर 26, 2025 AT 11:15

    क्या आप जानते हैं कि ये सब एक बड़ी साजिश है? नीराज घेवन और धर्मा प्रोडक्शंस ने नेटफ्लिक्स के साथ एक गुप्त डील की है ताकि ऑस्कर वोटर्स को इसे देखने के लिए मजबूर किया जा सके। और मार्टिन स्कॉर्सेसी? वो तो बस एक नाम है - वो तो बस एक फोटो दिखाते हैं और बाकी सब भारतीय टीम करती है।

    मध्य प्रदेश का फिल्म पॉलिसी? बस एक चाल है - जिस राज्य की जमीन पर शूट हो रहा है, वो अब दुनिया की नक्शे पर आ गया। अब ये सब एक राष्ट्रीय ब्रांडिंग कैंपेन है। आप देखिएगा, अगले साल किसी और राज्य की फिल्म भी आएगी।

    और ईशान खट्टर? वो तो बस एक लड़का है जिसे किसी ने बताया कि ‘खाकी पहनो तो दिल जीत जाएगा’।

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    dhananjay pagere

    सितंबर 27, 2025 AT 17:55

    ये फिल्म ऑस्कर के लिए बनाई गई है, न कि दर्शकों के लिए। बस एक अच्छा नाम, एक अच्छा निर्देशक, और एक अच्छा प्रोडक्शन हाउस - और बस! 😎

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    Shrikant Kakhandaki

    सितंबर 29, 2025 AT 15:27

    हां भाई साहब ऑस्कर वाले तो भारतीय फिल्मों को नामांकित करने के लिए तैयार नहीं हैं। वो तो अपने देश की फिल्मों को ही चाहते हैं। इस फिल्म को नामांकित करने के लिए भारत को एक बड़ा बजट लगाना पड़ेगा। और जान्हवी कपूर? वो तो बस एक नाम है। वो अभिनय नहीं करती, वो बस फोटो लेती है।

    मैंने इस फिल्म को देखा नहीं है लेकिन मैं जानता हूं कि ये एक बड़ा धोखा है।

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    bharat varu

    अक्तूबर 1, 2025 AT 14:23

    ये फिल्म बस एक फिल्म नहीं - ये एक उम्मीद है। भारतीय फिल्मों को दुनिया भर में सुना जाना चाहिए। और ये फिल्म उसकी शुरुआत है।

    ईशान और विशाल के अभिनय को देखकर लगता है कि भारत के छोटे गांवों के लड़के भी दुनिया के लिए कुछ कर सकते हैं।

    धर्मा प्रोडक्शंस ने एक बार फिर साबित कर दिया कि अच्छी कहानी के साथ कोई भी फिल्म दुनिया को छू सकती है।

    मध्य प्रदेश की फिल्म पॉलिसी भी बहुत अच्छी है। अब और राज्य भी ऐसा करें।

    मैं इस फिल्म को देखने के लिए बहुत उत्सुक हूं। नेटफ्लिक्स पर आते ही तुरंत देखूंगा।

    भारत के लिए गर्व का दिन है।

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    Vijayan Jacob

    अक्तूबर 3, 2025 AT 12:51

    फिल्म के लिए ऑस्कर का नामांकन बहुत बड़ी बात है - लेकिन ये नामांकन भारतीय सिनेमा के लिए नहीं, बल्कि भारत की छोटी कहानियों के लिए है।

    हमने अपनी फिल्मों को बहुत बड़ा बनाने की कोशिश की है - लेकिन इस बार हमने एक छोटी सी चीज को बड़ा बनाने की कोशिश की है।

    और ये वही है जो दुनिया को समझना चाहती है।

    हम बहुत बड़े नहीं हैं - लेकिन हम बहुत सच्चे हैं।

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    Saachi Sharma

    अक्तूबर 3, 2025 AT 13:05

    मार्टिन स्कॉर्सेसी का नाम लेकर फिल्म को बढ़ाया गया है। वो तो बस एक नाम है।

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    shubham pawar

    अक्तूबर 4, 2025 AT 21:59

    ये फिल्म बस एक फिल्म नहीं है - ये एक विश्वास है। जब मैंने पहली बार इसका ट्रेलर देखा, तो मैंने सोचा - ये वो फिल्म है जो मैं अपने बच्चे को दिखाऊंगा। जब वो पूछेगा कि भारत क्या है, तो मैं इसे दिखाऊंगा।

    ये फिल्म मेरे दादाजी की कहानी है - जो एक गांव में रहते थे, जिन्होंने खाकी नहीं पहनी, लेकिन उनका सम्मान था।

    मैंने अभी तक इस फिल्म को नहीं देखा, लेकिन मैं जानता हूं कि ये फिल्म मेरे दिल को छू जाएगी।

    ये फिल्म मेरे लिए एक आत्मा की यात्रा है।

    और अगर ये फिल्म ऑस्कर नहीं जीतती, तो मैं नहीं मानूंगा कि दुनिया ने भारत को समझा है।

    मैं इस फिल्म के लिए रोऊंगा।

    और जब ये फिल्म आएगी, तो मैं अपने दोस्तों के साथ एक बड़ा पार्टी दूंगा।

    ये फिल्म बस एक फिल्म नहीं है - ये एक विश्वास है।

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    Nitin Srivastava

    अक्तूबर 6, 2025 AT 13:09

    नीराज घेवन की फिल्मों का एक विशिष्ट टोन है - जो एक बार देख लो तो आप उसे भूल नहीं सकते। ये फिल्म एक नया निर्माण नहीं, एक नया आत्म-अनुभव है।

    मार्टिन स्कॉर्सेसी का सहयोग इसे एक नया आयाम देता है - एक ऐसा आयाम जो बॉलीवुड के लिए अभी तक अज्ञात था।

    ये फिल्म एक विचार है - जो एक बार देख लो तो आप उसे भूल नहीं सकते।

    और जान्हवी कपूर? वो अभिनय करती हैं - न कि बस दिखती हैं।

    ये फिल्म ऑस्कर के लिए बनाई गई है - लेकिन ये भारत के लिए है।

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    Nilisha Shah

    अक्तूबर 7, 2025 AT 21:01

    इस फिल्म के बारे में सोचकर मुझे बहुत आशा हो रही है। ये फिल्म बस एक नामांकन के लिए नहीं, बल्कि एक नए तरीके से भारतीय कहानियों को दुनिया के सामने लाने के लिए है।

    मध्य प्रदेश की फिल्म पॉलिसी का असर देखकर लगता है कि राज्य स्तर पर भी फिल्म उद्योग को समर्थन देना जरूरी है।

    ईशान खट्टर और विशाल जेठवा के अभिनय को देखकर लगता है कि भारतीय अभिनेता अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी काम कर सकते हैं।

    ये फिल्म दुनिया को दिखाएगी कि भारत की कहानियां बस गाने या नाच के बारे में नहीं हैं - वो इंसान के बारे में हैं।

    मैं इस फिल्म को देखने के लिए बहुत उत्सुक हूं।

    और अगर ये फिल्म ऑस्कर जीतती है, तो ये भारतीय सिनेमा के लिए एक नया युग की शुरुआत होगी।

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    Kaviya A

    अक्तूबर 8, 2025 AT 23:32

    ये फिल्म बस एक फिल्म है और ऑस्कर बस एक पुरस्कार है और मैं बस एक दर्शक हूं और मैं इसे देखने वाली हूं और मैं रोऊंगी और फिर मैं इसे दोबारा देखूंगी और फिर मैं इसे अपने दोस्तों को दिखाऊंगी और फिर मैं इसे अपने बच्चे को दिखाऊंगी

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    Supreet Grover

    अक्तूबर 9, 2025 AT 04:40

    इस फिल्म के निर्माण की रणनीति एक उदाहरण है कि कैसे एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फिल्म को बनाया जा सकता है। धर्मा प्रोडक्शंस ने एक बार फिर से साबित कर दिया है कि भारतीय सिनेमा की क्षमता असीमित है।

    मार्टिन स्कॉर्सेसी का सहयोग इस फिल्म को एक नए आयाम में ले जा रहा है - एक ऐसा आयाम जिसमें भावनात्मक सच्चाई और तकनीकी श्रेष्ठता का संगम होता है।

    मध्य प्रदेश की फिल्म पॉलिसी ने एक नया मानक स्थापित किया है - जिसे अन्य राज्यों को अपनाना चाहिए।

    ये फिल्म ऑस्कर के लिए एक नामांकन नहीं, बल्कि एक नए युग की शुरुआत है।

    मैं इस फिल्म को देखने के लिए बहुत उत्सुक हूं।

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    Saurabh Jain

    अक्तूबर 10, 2025 AT 21:05

    भारत के लिए ऑस्कर का नामांकन एक बड़ी बात है - लेकिन ये फिल्म दुनिया को दिखाने के लिए है कि हम अपनी कहानियां कैसे सुनाते हैं।

    ये फिल्म बस एक फिल्म नहीं - ये एक संदेश है।

    और अगर ये फिल्म नामांकित नहीं होती, तो ये ऑस्कर की निष्पक्षता के बारे में सवाल खड़े करती है।

    लेकिन अगर ये फिल्म नामांकित होती है, तो ये भारतीय सिनेमा के लिए एक नया युग की शुरुआत है।

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