CBFC – भारतीय फ़िल्म प्रमाणन और सेंसरशिप का सार

जब हम CBFC, केन्द्रीय फ़िल्म प्रमाणन बोर्ड, जो भारत में सभी फ़िल्मों को जारी करने से पहले उनकी सामग्री की जाँच करता है. Also known as सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ फ़िल्म सर्टिफ़िकेशन, it decides the age‑appropriate rating and approves or demands cuts before a movie hits the theatres.

CBFC का काम केवल रेटिंग देना नहीं है; यह फ़िल्म रेटिंग, एक प्रणाली जो दर्शकों को सामग्री की उपयुक्तता बताती है को परिभाषित करता है। माता‑पिता इस जानकारी से बच्चों के देखने के विकल्प तय करते हैं, और प्रोड्यूसर इसे मार्केटिंग रणनीति में इस्तेमाल करते हैं। इसी तरह सेंसरशिप, फ़िल्म में आपत्तिजनक या संवेदनशील दृश्य को हटाने या बदलने की प्रक्रिया सीधे बॉक्सऑफ़िस संख्याओं को प्रभावित करती है—एक हाई‑रिज़ॉल्यूशन एक्शन नाइंट की कट के बाद भी दर्शक संतुष्ट हो सकते हैं, या कट से फिल्म का आकर्षण घट सकता है।

अगर आप फ़िल्म उद्योग की वित्तीय पक्षी देखना चाहते हैं, तो बॉक्सऑफ़िस, फ़िल्म के थिएटर में कमाए गए कुल रिवेन्यू का सूचकांक को समझना ज़रूरी है। कई बार, एक फ़िल्म की रेटिंग (जैसे "U/A" बनाम "A") दर्शकों की संख्या, टिकट कीमत और रिलीज़ टाइमिंग को बदल देती है। इसलिए प्रोड्यूसर अक्सर CBFC के साथ मिलकर एक ऐसा कंटेंट तैयार करते हैं जो सेंसिटिव मुद्दों को संतुलित करते हुए कमर्शियल सफलता भी दिलाए।

CBFC के प्रमुख नियम, हाल के अपडेट और उनका असर

पिछले साल में, CBFC ने कुछ नए दिशानिर्देश पेश किए—जैसे कि लैंगिक पहचान, हिंसा और धूम्रपान के चित्रण पर सख्त मानक। ये बदलाव सीधे फ़िल्म रेटिंग के ढाँचे को बदलते हैं और प्रोडक्शन हाउस को पहले से ज्यादा लचीला बनाते हैं। उदाहरण के तौर पर, एक एक्शन थ्रिलर में यदि अत्यधिक रक्तपात दिखाया जाता है, तो बोर्ड उसे "A" रेटिंग दे सकता है, जिससे 18+ दर्शकों तक सीमित हो जाता है। वहीं, यदि वही सीन को थोड़ा कम किया जाये, तो वह "U/A" पर रह सकता है और परिवारों के दर्शक भी इसमें शामिल हो सकते हैं।

सेंसरशिप के कारण अक्सर कंटेंट में बदलाव होते हैं, लेकिन वही बदलाव कभी‑कभी नई रचनात्मकता को भी जन्म देते हैं। कई निर्देशक अब टूल्स जैसे “वॉयस‑ओवर” या “सिम्बॉलिक इमेजरी” का उपयोग करके संवेदनशील मुद्दों को सीधे नहीं दिखाते, बल्कि इशारे के जरिए प्रस्तुत करते हैं। यह प्रवृत्ति न सिर्फ बोर्ड की दिशा‑निर्देशों के अनुकूल है, बल्कि दर्शकों को भी उतना ही आकर्षित करती है।

भारतीय फ़िल्म उद्योग के आर्थिक पक्ष को देखते हुए, बॉक्सऑफ़िस का आंकड़ा अक्सर रेटिंग से जुड़ी नीति के साथ बदलता है। एक केस स्टडी में, 2024 में रिलीज़ हुई एक फिल्म ने शुरुआती दो हफ़्तों में "U/A" रेटिंग के कारण औसत 70% टिकट बिक्री हासिल की, जबकि उसी साल "A" रेटिंग वाली एक समान बजट की फिल्म ने केवल 30% तक ही पहुँच पाई। इस तरह की आँकड़े दर्शाते हैं कि CBFC की निर्णय प्रक्रिया सिर्फ नियम नहीं, बल्कि व्यावसायिक रणनीति का भी हिस्सा है।

इस टैग पेज में आप देखेंगे कि कैसे विभिन्न समाचार, व्यापार, खेल और मनोरंजन से जुड़ी ख़बरें CBFC के निर्णयों से प्रभावित होती हैं। चाहे सोने की कीमत में उतार‑चढ़ाव, चुनाव शेड्यूल या फ़िल्म बॉक्सऑफ़िस की गिरावट—सबका कोई न कोई टकराव CBFC के नियमों से हो सकता है। इस कारण, हमने इस टैग के अंतर्गत उन लेखों को इकट्ठा किया है जो आपके लिए फायदेमंद हो सकते हैं—जैसे कि फ़िल्म रेटिंग से जुड़ी नवीनतम अपडेट, सेंसरशिप के कानूनी पहलू, और बॉक्सऑफ़िस पर प्रभाव स्पष्ट करने वाली केस स्टडीज़।

अब आप तैयार हैं उन सभी अपडेट्स को पढ़ने के लिए, जो यह समझाएँगे कि CBCB‑का (ड्राफ़्ट एरर—सही शब्द CBFC) काम कैसे फ़िल्म व्यवसाय को आकार देता है। नीचे की सूची में विभिन्न क्षेत्रों की खबरें हैं—हर एक में CBFC की भूमिका, फ़िल्म रेटिंग के परिणाम, और सेंसरशिप के प्रभाव की गहराई से चर्चा है। पढ़ते‑जाते आप देखेंगे कि कैसे ये तत्व मिलकर भारतीय सिनेमा को दिशा देते हैं।

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