पाकिस्तान की आपत्तियों के चलते भारत ने दिखाया सख्त तेवर
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की रक्षा मंत्रियों की बैठक में इस बार जो हुआ, उसने भारत की कूटनीति को एक नया मोड़ दे दिया। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चीन के क़िंगदाओ में आतंकवाद जैसे गंभीर मुद्दे पर मजबूती से अपनी बात रखी। लेकिन बात केवल कहने भर तक नहीं रही—उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ मजबूत शब्दों की मांग की, जबकि एक खास देश (जिसका इशारा साफ तौर पर पाकिस्तान की ओर था) ने भारत के मसौदे पर अड़चन डाल दी। यह मुस्लिम-बहुल जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ 2022 का बड़ा आतंकी हमला आज भी नासूर की तरह गूंजता है, जिसमें 'द रेजिस्टेंस फ्रंट' (TRF) ने 26 लोगों की जान ली थी। यह वही TRF है, जिसे लश्कर-ए-तैयबा की छाया माना जाता है। राजनाथ सिंह ने बैठक में साफ कर दिया कि आतंकवाद के खिलाफ सिर्फ बयानबाजी से शांति नहीं आएगी—कड़ी कार्रवाई की जरूरत है।
बैठक के बाद विदेश मंत्रालय (MEA) ने भी साफ किया कि भारत की चिंता सिर्फ बयान के शब्दों की नहीं थी, बल्कि उस दोहरी नीति से थी जिसकी वजह से क्षेत्र में आतंकी घटनाएं हो रही हैं। भारत चाहता था कि संयुक्त बयान में यह बात स्पष्ट हो कि आतंकवाद के खिलाफ क्विक और संगठित प्रतिक्रिया जरूरी है। पाकिस्तान के विरोध के चलते यह प्रस्ताव नहीं माना गया, तो भारत ने साझा दस्तावेज़ पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया।
आतंकवाद को लेकर भारत की साफ शब्दों में मांग
राजनाथ सिंह ने SCO में मौजूद सभी देशों को चेताते हुए कहा कि आतंक को बतौर 'राज्य नीति' इस्तेमाल करने वालों की वजह से न केवल सीमा पार, बल्कि पूरे इलाके में स्थिरता खतरे में है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में यह भी कहा कि क्षेत्रीय शांति के लिए असल जरूरत दोहरे मापदंडों को खत्म करने की है। भारत की चिंता समझना मुश्किल नहीं जब Pahalgam जैसे हमले, जो धार्मिक पहचान के आधार पर किये जाते हैं, फिर चर्चा में आते हैं।
सुरक्षा विश्लेषकों का मानना है कि भारत का यह कदम बताता है कि वह अब अंतरराष्ट्रीय बैठकों में भावनात्मक या राजनीतिक दबाव में आकर अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करेगा। SCO जैसे मंचों पर साझा बयान से जुड़ना केवल दिखावटी एकता नहीं, बल्कि व्यावहारिक कदमों और स्पष्ट नीति की मांग करता है—भारत इसी सोच को मजबूती से आगे बढ़ा रहा है।
- राजनाथ सिंह ने SCO में आतंक के खिलाफ कड़े शब्दों और ठोस कार्रवाई की मांग की।
- साझा बयान में भारतीय धारणाओं को भुला दिया गया, जिसके जवाब में भारत ने दस्तखत नहीं किए।
- विदेश मंत्रालय ने इस फैसले की पुष्टि की और भारत के प्रधान रुख को दोहराया।
- पाकिस्तान जैसे देशों की कथित भूमिका को लेकर नकेल कसने का संदेश दिया गया है।
इस पूरे घटनाक्रम ने यह साफ किया कि भारत क्षेत्र में शांति के लिए सिर्फ सम्मेलनों और हस्ताक्षरों पर भरोसा नहीं, बल्कि ठोस और सामूहिक कदमों की उम्मीद करता है।
Saachi Sharma
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