सहारा रेगिस्तान क्या है? आसान शब्दों में समझें
सहारा रेगिस्तान अफ्रीका का सबसे बड़ा गर्मी वाला रेगिस्तान है। यह लगभग 9.2 मिलियन वर्ग किलोमीटर फैला हुआ है, यानी भारत के कई राज्यों को भी घेर सकता है। यहाँ दिन में बहुत तेज़ धूप और रात में ठंड पड़ती है। इस इलाके में बार‑बार रेत की आँधी आती रहती है, इसलिए यात्रा करने वाले लोग सावधानी बरतते हैं।
सहारा रेगिस्तान की प्रमुख बातें
रेगिस्तान का अधिकांश हिस्सा मरुस्थलीय पौधों से ढका रहता है – जैसे कि साक्की (जौ) और खेज़र। इन पौधों को कम पानी में जीने के लिए खास जड़ें होती हैं, इसलिए यहाँ की वनस्पति बहुत टिका हुई दिखती है। जानवर भी इसी हिसाब से अनुकूलित होते हैं: ऊंट, शैतान बिल्ला (फेनक), और कई प्रकार के छोटे जीव जैसे चूहे‑जैसे प्राणी रेगिस्तान में रहते हैं।
सहारा का मौसम बहुत बदलता है। गर्मियों में तापमान 45 °C तक पहुंच सकता है, जबकि सर्दियों में कभी‑कभी शून्य से नीचे गिर जाता है। बारिश साल में कुछ ही बार होती है, और जब भी आती है तो जल्दी‑जल्दी सूख जाती है। यह अनिश्चित जलवायु खेती को मुश्किल बना देती है, लेकिन स्थानीय लोग पारंपरिक तरीकों से अपने पानी का प्रबंध करते हैं – जैसे कि कूड़ा (छेद) या भू-नलिकाओं से भूमिगत जल निकालना।
आज के समय में सहारा से जुड़ी खबरें
हाल ही में कई अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने कहा है कि गर्मी का असर सहारा रेगिस्तान में बढ़ रहा है। बड़े‑बड़े जंगलों की जगह रेत और पत्थर छा रहे हैं, जिससे स्थानीय जनसंख्या को नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इस कारण से कुछ देशों ने जल संरक्षण के लिए नए प्रोजेक्ट शुरू किए हैं – जैसे कि सौर पैनल लगाकर पानी को पम्प करने वाले सिस्टम।
पर्यटन भी बढ़ा है, लेकिन इसे सावधानी से देखना चाहिए। कई टूर ऑपरेटर अब रेत की आँधी और गर्मी से बचाव के लिए गाइडेड ट्रैक्स पेश कर रहे हैं। अगर आप सहारा में यात्रा का प्लान बना रहे हैं तो सुबह जल्दी निकलें, पर्याप्त पानी रखें और धूप से बचने के लिए टोपी या स्कार्फ पहनें।
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सहारन रेगिस्तान में दुर्लभ बारिश: दशकों बाद आया पानी का संकट और राहत
सहारा रेगिस्तान के दक्षिणपूर्वी मोरक्को के हिस्सों में दशकों बाद अभूतपूर्व तेज बारिश के कारण बाढ़ आ गई है। टाटा और तगौनाइट जैसे क्षेत्र जो कि आमतौर पर पृथ्वी के सबसे शुष्क स्थलों में गिने जाते हैं, उनमें सितंबर के केवल दो दिनों में वार्षिक औसत से अधिक बारिश हो गई है। इस असाधारण घटना को उन ध्रुवीय तूफानों में से एक कहा गया है जिसने न केवल तबाही मचाई बल्कि लंबे समय से नमी की अनुपस्थिति को भी भंग किया है।
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